यह मन्दिर मथुरा जिले के वृन्दावन धाम में स्थित है। यह वृन्दावन के प्रसिद्ध सात मन्दिरों में से एक मन्दिर है। श्री राधा रमण मन्दिर वृन्दावन जो कि सप्त देवालयों में एक गिना जाने वाला है, निधिवन की उत्तरी दीवार के बाहरी हिस्से पर स्थित है। जहाँ श्रीकृष्ण की ‘राधा रमण ठाकुर‘ के रूप में पूजा की जाती है। अर्थात राधा रमण का अर्थ – राधा के प्रेमी (राधा के रमण) के रुप में पूजा की जाती हैं।
माना जाता है कि 500 वर्ष पूर्व गोपाल भट्ट गोस्वामी द्वारा इस मन्दिर का शिलान्यास कराया गया। पवित्र शिला शालिग्राम से स्वयं देव रुप में उत्पन्न हुए ‘श्री राधारमण ठाकुर‘। कहा जाता है कि गोपाल भट्ट गोस्वामी जो भगवान चैतन्य महाप्रभू के मुख्य छः गोस्वामी शिष्यों में से एक थे, उनके द्वारा राधा रमण ठाकुर मन्दिर की स्थापना की गयी।
गोपाल भट्ट गोस्वामी संक्षिप्त विवरण
चैतन्य महाप्रभू के परम शिष्य गोपाल भट्ट गोस्वामी तमिलनाडु के त्रिचरापल्ली के पास के रहने वाले थे। एक बार चैतन्य महाप्रभू जी अपनी दक्षिण भारत की यात्रा के लिए निकले। अपनी दक्षिण भारत की यात्रा के दौरान वह भट्ट निवास नामक स्थान पर रूके। जहाँ वह गोपाल भट्ट और उनके परिवार से मिले। गोपाल भट्ट के पिता वंेकट भट्ट एक आध्यातमिक प्रवृति के व्यक्ति थे। चैतन्य महाप्रभु के भट्ट निवास में रूकने के दौरान जब गोपाल भट्ट गोस्वामी द्वारा उनकी सेवा की गयी।
गोपाल भट्ट की दीक्षा
तब चैतन्य महाप्रभू ने गोपाल भट्ट को देख महसूस किया कि गोपाल भट्ट भी आध्यातमिक प्रवृति के व्यक्ति हैं। तब चैतन्य महाप्रभु उनकी सेवा से खुश हुए और गोपाल भट्ट जी को उनके पिता से आज्ञा लेकर दीक्षा प्रदान की। जिससे चैतन्य महाप्रभू गोपाल भट्ट जी को गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय में ले आये। उसके बाद चैतन्य जी ने उन्हें श्रीराधा कृष्ण भगवान के स्वरूप की पूजा अर्चना करने के तरीकों को समझाया। दीक्षा के कुछ समय बाद जब उनके माता पिता की मृत्यू हो गयी, तो गोपाल भट्ट जी सब छोड़ वृन्दावन चले आये। आने के कुछ समय बाद उन्हें गोपाल भट्ट गोस्वामी बना दिया गया।
गोपाल भट्ट जी को स्वपन
गोपाल भट्ट जी के गोस्वामी बन जाने के कुछ समय पश्चात जब चैतन्य महाप्रभु जी एक दिन अचानक गायब हो गये। उनके अचानक से गायब होने के बाद गोपाल भट्ट गोस्वामी जी भगवान से तीब्र वियोग महसूस करने लगे। वियोग में रहने के कुछ दिन पश्चात जब एक दिन गोपाल जी रात में सो रहे थे। तब भगवान श्रीकृष्ण से उनकी पीड़ा को देखा नहीं गया और इसलिए श्रीकृष्ण ने गोपाल भट्ट जी को रात्रि में स्वपन दे निर्देश दिया कि ‘‘अगर आप मेरे दर्शन करना चाहते है, तो शीघ्र ही नेपाल की यात्रा करें।‘‘
नेपाल की यात्रा
गोपाल भट्ट स्वामी द्वारा स्वपन देखे जाने पर उन्होंने शीघ्र ही नेपाल की यात्रा की। जब वह नेपाल पहुँचे, तो उन्होंने गंडकी नदी में स्नान किया। जब गोपाल भट्ट गोस्वामी जी ने नदी में स्नान कर अपने कमंडल को नदी में पानी भरने के लिए डाला, तो उसमें बहुत सारी शालीग्राम शिलाऐं आ गयी। जिसके बाद उन्होंने कमंडल के पानी को बापस नदी में डाल दिया और फिर से पानी भरने के लिए कमंडल को नदी में डुबोया, तो फिर में उनके कमंडल में बहुत सारी शालीग्राम शिलाऐं आ गयी।
शालीग्राम शिलाऐं
इसके पश्चात जब उन्होंने तीसरी बार कमंडल को नदी का भरने के लिए नदी में डुबाया, तो उसमें पुनः शालीग्राम शिलाऐं आ गयी। इन शिलाओं को गोपाल भट्ट स्वामी भगवान श्रीकृष्ण की महिमा समझ वृन्दावन ले आये और इन शिलाओं की पूजा अर्चना करने लगे। जब गोपाल भट्ट स्वामी ने शिलाओं को कमंडल से बाहर निकाला, तो उन्हें पता चला कि कमंडल मे तो बारह शिलाऐं हैं। इन शालीग्राम शिलाओं की गोपाल भट्ट स्वामी द्वारा नित्य दिन पूजा अर्चना की जाने लगी।
ठाकुर श्री राधा रमण व धनी सेठ
जब गोपाल भट्ट गोस्वामी द्वारा प्रतिदिन उन 12 शालीग्राम शिलाओं की सेवा पूजा की जाने लगी। तब गोपाल गोस्वामी जी कहीं भी जाते, तो एक कपड़े में उन सभी 12 शालीग्राम शिलाओं को बाँधकर ले जाते थे। तब एक धनी सेठ वृन्दावन में आये और उनके द्वारा श्री राधा रमण जी के लिए बहुत सारे गहने व कपड़े दान में दिये गये। उन गहने व कपड़ो को देख गोपाल भट्ट गोस्वामी जी ने उस धनी सेठ से कहा कि मैं यह कपड़े व गहनों को अपने गोलनुमा आकार के शालीग्राम शिलाओं के स्वरूप प्रभू को यह कैसे पहना पाऊँगा।
गोपाल भट्ट गोस्वामी व उनकी निराशा
स्वामी जी द्वारा उनके गोल आकार के शालीग्रामों को यह कैसे पहनाया जा सकता था। इसलिए गोपाल भट्ट गोस्वामी जी ने सेठ से कहा कि कृपा कर आप यह गहने व कपड़े किसी और सेवायत को दे दें, ताकि इससे किसी और देव को पहनाया जा सके। कथाओं में ऐसा वर्णित है कि उस धनी सेठ ने उन गहनों व कपड़ो को लेने से मना कर दिया। तब गोपाल भटट गोस्वामी जी निराश हो सोचने लगे कि काश मेरे भी प्रभू होते जिनको मैं सेवा पूजा, श्रृंगार, आरती, भोग आदि करा पाता। माना जाता है कि यह सोचते हुए गोस्वामी जी शालीग्रामों को टोकरी में ढ़क कर रखने लगे और साथ ही उनके साथ वह गहने व कपड़े भी रख दिये और कुछ क्षण बाद वह सो गये।
ठाकुर श्री राधा रमण व उनकी उत्पत्ति
जब उन्होंने सुवह उठ स्नान आदि कर उस शालीग्रामों से भरी टोकरी को खोला, तो उसमें एक शालीग्राम श्रीकृष्ण का रूप धारण कर बांसुरी हाथ में लिए विराजमान थे। जो देखने में अति सुन्दर व मोहित कर देने वाली प्रतिमा थी, जिसके साथ बाकी के बचे ग्यारह शालिग्राम और थे। जब उन्होंने टोकरी में देखा कि एक ‘दामोदर शिला‘ जो भगवान श्रीकृष्ण के त्रिभंगा रूप में प्रकट हुई है। जिनके स्वरूप को देख गोस्वामी जी ने उनका नाम ठाकुर श्री राधा रमण रख दिया। कहते है कि इस प्रकार भगवान ठाकुर श्री राधा रमण एक शालीग्राम शिला से पूर्ण आकार के देवता के रूप में प्रकट हुए थे।
राधा रमण जी की कुछ खास बात
कथाओं में वर्णित है और लोगो का मानना भी यही है कि ठाकुर श्री राधा रमण जी का विग्रह तीन विग्रहो का मिला जुला रूप है। जैसे कि आचार्यो का मानना है कि राधा रमण जी का मुखारबिन्द, भगवान श्री गोविन्द देव जी के समान है और इनका वक्ष स्थल ठाकुर श्री गोपीनाथ जी के समान है व राधा रमण जी के चरण कमल भगवान श्री मदन मोहन जी के समान बताये गये है और यह पूर्णतः सच भी है। ऐसा कहते है कि अगर ठाकुर श्री राधा रमण जी के दर्शन किये जाये, तो तीनों विग्रहों के दर्शन का फल मिलता है और इनके दर्शन मात्र से तीनों देवताओं के दर्शन हो जाते है।
ठाकुर श्री राधा रमण की अपने भक्तों पर कृपा
ऐसा माना जाता है कि ठाकुर श्री राधा रमण के भक्त उनकी छवि को जीवित मानते हैं, क्योंकि राधा रमण जी किसी एक चुने हुए परिवार को अपने दैनिक कार्यक्रम में सहायता करने का विशेष अवसर प्रदान करते है। इस प्रकार श्री राधा रमण जी ने गोस्वामी जी की इच्छा पूरी कर शालीग्राम को एक मूर्ति के रूप में प्रकट कर दिया। बस इसी प्रकार हुई ठाकुर श्री राधा रमण जी की अपने भक्तों पर कृपा।
हम आपको बता दें कि मन्दिर परिसर के अन्दर श्री चैतन्य महाप्रभू जी का एक उनाग वस्त्र है, जो उनके गायब होने से पहले उनके साथ देखा गया था और साथ में गोपाल भट्ट गोस्वामी जी की समाधि भी स्थित है। साथ ही वर्तमान में मन्दिर के आचार्य श्रीवत्स गोस्वामी जी है।
राधा रमण की पीठ और बांसुरी रहस्य
हम सब जानते है कि ठा. राधा रमण लाल शालिग्राम शिला से प्रकट हुए है, इसलिए इनका विग्रह सिर्फ 12 अंगुल का है। राधा रमण जी के दर्शन इतने मनोहारी है कि जो भी प्रेम भाव से इनके दर्शन करें, वो मूर्छित हो जाये। ग्रंथो में कहा गया है कि राधा रमण जी की पीठ को देखने पर वह शालिग्राम के जैसे ही प्रतीत होती है अर्थात राधा रमण जी की पीठ को देखने पर शालीग्राम जी के दर्शन होते है। राधा रमण जी की एक दिलचस्प बात और जानने को मिलती है कि ठा. श्री राधा रमण जी बांसुरी को धारण नहीं करते है, क्योंकि वह आकार मे बहुत छोटे है। इसलिए उन्हें बांसुरी धारण नहीं कराते है।
ठा. जी की दंतुनी के दर्शन
हम सब जब भी श्रीकृष्ण का ध्यान करते है, तो उनकी मुस्कुराती हुई मूरत हमारे चेहरे के सामने आ जाती है। लेकिन जब हम सम्पूर्ण विश्व के श्रीकृष्ण स्वरूप की करते है, तो पूरे विश्व में राधा रमण लाल जी का विग्रह इकलौता विग्रह है। लेकिन राधा रमण लाल जब मुस्कुराते है, तो वह मुस्कुराते वक्त अपनी दंतुनी के भी दर्शन कराते है। जो भक्त पूर्ण प्रेमभाव से श्री राधा रमण लाल के दर्शन करता है, उसे उनकी दंतुनी के दर्शन भी होते है। जिन भक्तों पर ठा. श्री राधा रमण लाल जी की कृपा होती है, उन्हें ठाकुर जी हस्ते समय कभी 2 दातों के, कभी 4 दातों के दर्शन देते है। ठा. श्री राधा रमण लाल अपनी कृपा स्वरूप अपने भक्तों को अपनी दंतुनी के दर्शन देते है।
मन्दिर की रसोई
लोगो और सेवायत आचार्य गोस्वामियों का कहना है कि करीब 477 साल से मन्दिर की रसोई की अग्नि स्वतः ही जल रही है। जिसे मन्दिर के गोस्वामियों द्वारा मन्दिर के शुरूआती दिनों में जलाया गया था, जो आज भी वैसे ही जल रही है।
कहा जाता है कि मन्दिर की रसोई में मन्दिर का भोग गोस्वामी परिवार के पुरूषों द्वारा बनाया जाता है। जिसके बहुत कड़े नियम कानून है, जैसे जिस गोस्वामी द्वारा भोजन पकाया जा रहा है। वह स्नान कर धोती पहन फिर भोजन को पकाता है और अगर उसे किसी जरूरी काम से बाहर जाना पड़ता है, तो उसे रसोई में प्रवेश करने के लिए फिर से स्नान आदि कर धोती पहन कर रसोई में प्रवेश करना पड़ता है।
आरती और सेवा पूजा
माना जाता है कि मन्दिर में आरती करने के लिए कभी किसी माचिस का प्रयोग नहीं किया गया है। मन्दिर मे आरती करने के लिए मन्दिर के रसोई घर से अग्नि को लाया जाता है और फिर आरती के लिए दीपक प्रज्वलित किया जाता है। कहते है कि मन्दिर के गोस्वामियों को राधा रमण जी की सेवा के लिए सेवा अवधि का अग्रिम रूप से कैलेंडर बांटा जाता है और उसी के अनुसार सेवा की जाती है। गोस्वामियों द्वारा अपनी अवधि के समय में उनके शिष्यों को भी आमंत्रित किया जाता है। जिसमें वह सब साथ मिलकर भगवान के समारोह का आंनद लेते है।
मन्दिर के प्रमुख त्योहार
ठाकुर श्री राधा रमण मन्दिर में प्रतिदिन लोगों का आना जाना लगा रहता है। अगर बात इस मन्दिर के त्योहारों की करें, तो इस मन्दिर में कई त्योहारों को विशेष रूप से मनाया जाता है। जैसे – राम नवमी, झूलन यात्रा, चंदन यात्रा और अन्य कई।
मन्दिर में ‘‘राम नवमी‘‘ चैत्र मास में मनायी जाती है।
‘‘झूलन यात्रा‘‘ जिसे झूला उत्सव भी कहा जाता है। यह श्रावण माह में वर्षा ऋतु की शुरूआत में मनाया जाता है। इस त्योहार में सभी देवताओं को सोने की परत के झूले में बिठाया जाता है। जिससे खुश हो सभी लोग नृत्य करते और प्रार्थना करते है।
‘‘बलराम पूर्णिमा‘‘ जिसे श्रावण माह के अन्त में मनाया जाता है। इस त्योहार में भगवान श्रीकृष्ण के साथ साथ उनके बड़े भाई बलराम की भी पूजा की जाती है, जिसमें उन्हें स्नान, नये वस्त्र, भोग एवं अन्य आध्यात्मिक चीजें उपहार स्वरूप दी जाती है।
‘‘श्रीकृष्ण जन्माष्टमी‘‘ जिसे भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण को दूध व पंचामृत से स्नान कराया जाता है। जिसके बाद भगवान का अभिषेक, प्रार्थना, आरती की जाती है, यह सब आधी रात तक चलता रहता है। जिस दौरान लोगो का मन्दिर आना जाना बढ़ जाता है।
‘‘श्रीराधा जन्माष्टमी‘‘ जिसे भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह त्योहार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के ठीक 15 दिन बाद मनाया जाता है। राधा अष्टमी के दिन मन्दिर में आने वाले सभी भक्तजन आधे दिन का उपवास करते है व आधें दिन बाद श्रीराधा रानी का अभिषेक कर भोज का आंनद लेते है।
‘‘कार्तिक का महीना‘‘ जिसे कार्तिका भी कहा जाता है, जो अक्टूबर से नवम्बर महीने में होता है। इस पूरे महीने में भक्त भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अर्चना पूरे भाव से करते है व दीप दान भी पूर्ण श्रद्धा के साथ किया जाता है। जिसके बाद पूजा कर भोग लगाया जाता है।
‘‘गौरा पूर्णिमा‘‘ यह त्योहार फाल्गुन माह में मनाया जाता है। कहा जाता है कि इस दौरान स्वामी चैतन्य महाप्रभू जी प्रकट होते है। इस दौरान भगवान राधा रमण जी को कई सुन्दर पौशाक भेट की जाती है और साथ ही इस दिन को वृन्दावन में होने वाली होली का अंतिम दिन माना जाता है अर्थात अन्तिम दिन के रूप में इस दिन को चिन्हित किया गया है।
यह सब इस मन्दिर के प्रमुख त्योहारों में से एक है।
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