हम सभी जानते हैं कि बांके बिहारी जी का प्राकटय निधिवन में हरिदास जी के समक्ष हुआ। जब स्वामी हरिदास जी ने बिहारी जी के प्राकटय को देखा, तो उसका नाम बांके बिहारी रख दिया और क्योंकि स्वामी हरिदास जी ने ठाकुर जी के विग्रह को 8 साल के छोटे बच्चे के रूप में माना था। इसलिए स्वामी जी नही चाहते थे कि किसी के भी द्वारा ठाकुर जी को जगाने के लिए या उनकी आरती करने के लिए मन्दिर में घण्टों व घण्टियों का प्रयोग किया जाये। इसलिए तब से यह प्रथा वर्तमान में चली आ रही है और न ही मन्दिर में तालियों के द्वारा भगवान की आरती की जाती है। यही वजह है कि वर्तमान में बांके बिहारी जी की आरती राग के द्वारा की जाती है।
क्यों बंशी धारण नहीं करते बांके बिहारी?
पौंराणिक कथाओं में वर्णन के अनुसार बांके बिहारी मन्दिर के सेवायत गोस्वामी द्वारा बताया जाता है, कि स्वामी हरिदास जी कहते है कि एक सुबह जब हरिदास जी ने देखा कि उनके बिस्तर पर कोई सो रहा है। तो उन्होंने कहा कि कौन हो तुम जो मेरे बिस्तर पर सो रहे हो। हरिदास जी को क्या पता कि उस बिस्तर पर स्वयं बांके बिहारी जी सो रहे थे।
तब बिहारी जी स्वामी हरिदास की आवाज सुन वहाँ से निकल भागे और जब बिहारी जी निधिवन से भागे तब वह अपनी वंशी और चूड़ा को बिस्तर पर ही छोड़ चले गये थे। जब अगली सुबह पुजारियों ने मन्दिर के दरवाजें खोले, तो उन्हें पता चला कि बिहारी जी के चूड़ा और वंशी मन्दिर में नहीं है। जबकि मन्दिर के सभी दरवाजे पूर्णतः बन्द थे। जिससे पुजारी जन बहुत चिंतित हुए एवं इस चिंता के साथ वह सभी निधिवन में स्वामी हरिदास जी के पास पहुँचे और हरिदास जी को सब बता दिया।
तब उन पुजारियों की बात सुनकर स्वामी हरिदास जी उनसे बोले कि मेरे बिस्तर पर आज सुबह कोई सो रहा था, जो अपना कुछ सामान वहीं पर छोड़ गया है। आप सभी जाइयें और देख लीजियें। जब पुजारियों द्वारा बिस्तर पर देखा गया तो उन्हें ठा. श्री बांके बिहारी जी के चूड़ा और वंशी वहीं पर रखे। इसी कारण से कहा जाता है कि बिहारी जी वर्ष में एक बार शरद पूर्णिमा के दिन वंशी धारण करते है।
बिहारी जी के चरण कमल दर्शन
कहते है कि वृन्दावन में सबसे ज्यादा भक्तों की भीड़ बांके बिहारी मन्दिर में ही देखी जाती है। जिसके अनेक कारण है, जैसे- बिहारी जी के मन्दिर की भव्य सजावट जिसे देख ऐसा लगता है कि मानो प्रत्येक दिन कोई विशेष दिन हो। कहा जाता है कि बांके बिहारी जी अपने चरण कमलों के दर्शन प्रत्येक वर्ष में एक बार अक्षय तृतीया के दिन अपने भक्तों को देते है।
साथ ही यह भी कहा जाता है कि जिन भी भक्तों द्वारा श्री चरण कमलों का दर्शन किया जाता है, उनका तो बेड़ा ही पार हो जाता है। यही वजह है कि श्री चरण कमलों के दर्शन के लिए दूर दराज व ब्रज से आने वाले बिहारी जी के भक्तों का तांता लगा रहता है
प्रातिक्रिया दे