निधिवन का रहस्य – श्रीकृष्ण की रास स्थली

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निधिवन मथुरा शहर के वृन्दावन धाम में एक सुन्दर वन है। जिसे ‘वृंदा वन‘ अर्थात तुलसी जी से घिरा हुआ एक सघन वन। ग्रन्थों में ‘निधिवन‘ को बेहद ऐतिहासिक, धार्मिक एवं पवित्र स्थल माना गया हैं, क्योंकि निधिवन भगवान श्रीकृष्ण की लीला स्थलियों में से एक है। जिसे ग्रन्थों में ‘निकुंज वन‘ भी कहा गया है। निधिवन श्रीराधा की अष्ट सखियों में खास सखी के अवतार स्वामी हरिदास जी की साधना स्थली है। यह वही जगह है, जहाँ स्वामी हरिदास जी को भगवान बिहारी जी के विग्रह का स्वपन आया।

 

मान्यता है, यहाँ आज भी मध्यरात्रि के समय भगवान श्रीकृष्ण, राधा रानी व सखियों संग रास करते हैं। यहाँ तुलसी के विराट वृक्ष है, मानो जैसे सखियाँ खड़ी हो। निधिवन की संध्या आरती ही दिन की अंतिम आरती होती है, क्योंकि संध्या आरती के बाद यहाँ कोई नहीं रहता। इसलिए निधिवन के पट संध्या आरती के बाद बन्द कर दिये जाते है। जिसकी वजह से यहाँ रहने वाले सभी पशु-पक्षी निधिवन छोड़कर स्वतः ही चले जाते हैं।
Nidhivan temple

 

स्वामी श्री हरिदास महाप्रभु

 

स्वामी श्री हरिदास महाप्रभु का जन्म विक्रम संवत 1535 में भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की अष्टमी को अर्थात राधाअष्टमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में मथुरा शहर के वृन्दावन धाम के निकट एक गाँव में अपने नाना के यहाँ पर हुआ था। स्वामी हरिदास जी के पिता का नाम आशुधीर व माता श्रीमति गंगा देवी थी। हरिदास जी अपने बचपन से ही संगीत प्रेमी थे, इसलिए वह शास्त्रीय संगीतकार कहलाये। हरिदास जी का अपने बचपन से ही संगीत में अत्यधिक रूचि थी। आशुधीर जी ने हरिदास जी का यज्ञोपवीत संस्कार करा उन्हें वैष्णवी दीक्षा प्रदान की।

 

वैवाहिक जीवन

 

हरिदास जी की युवावस्था में जब उनके माता पिता के द्वारा उनका विवाह हरिमति नाम की एक सौंदर्यवान एवं सुशील कन्या के साथ करा दिया। परन्तु हरिदास जी का मन तो अपने बिहारी जी में ही लगा रहता था। हरिमति जी ने जब हरिदास जी को अपने गृहस्थ जीवन से विरक्त देखा, तो हरिमति जी ने उनकी भक्ति में दखल न देते हुए खुद को योगाग्नि में समर्पित कर अपना शरीर त्याग दिया। जिससे हरिमति जी का तेज स्वामी हरिदास जी के चरणों में जा मिला।

 

स्वामी हरिदास जी का वृन्दावन प्रस्थान

 

स्वामी हरिदास जी ने विक्रम सम्वत् 1560 में लगभग अपनी 25 वर्ष की आयु में वृन्दावन के लिए प्रस्थान किया। वृन्दावन पहुँचने के बाद उन्होंने एक रमणीक वन को सुनिश्चित कर उसे अपनी तपोस्थली बना लिया। यह तपोस्थली आज देशभर में ‘निधिवन‘ के नाम से जानी जाती है। निधिवन में स्वामी हरिदास जी हमेशा श्यामा कुंजबिहारी जी के ध्यान और भजन में लीन रहा करते थे।

 

‘निधिवन‘ ही वह जगह है, जहाँ पर स्वयं श्रीराधा कृष्ण ने अपने त्रिभंग आकार के विग्रह को प्रकट कर स्वामी हरिदास जी को उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर दिया था। जब स्वामी हरिदास जी का जीवनकाल पूरा हुआ, तो उन्होंने यहीं पर अपनी देह त्याग दी थी। जिसकी बाद में इसी जगह (निधिवन) में समाधी बना दी गयी।

 

बांके बिहारी जी की स्थापना

 

‘निधिवन‘ में स्वामी हरिदास जी को मिले त्रिभंग आकार के विग्रह का नाम उन्होंने ठा. श्री बांके बिहारी रख दिया। बांके बिहारी जी को हरिदास जी ने सर्वप्रथम निधिवन में प्रतिष्ठित किया था, जिनको आज अंगिनत लोगों के इष्टदेव के रूप में पूजा जाता है। पौराणिक कथाओं में वर्णित है कि बादशाह अकबर भी स्वामी हरिदास जी का संगीत सुनने के लिए अपना वेश बदलकर ‘निधिवन‘ में आये थे।

 

निधिवन और रास

 

‘निधिवन‘ वह वन जो चारो ओर से तुलसी से घिरा हुआ घना वन है, जिसमें तुलसी और मेहंदी के पेड़ एक दूसरे के साथ खड़े देखे जा सकते है। तुलसी के इतने विशाल पेड़ सिर्फ निधिवन में ही पाये जाते है। जिनकी डालियाँ उपर की ओर न बढ़कर नीचे की ओर विकसित होती है। जबकि इन पेड़ो में न तो कभी पानी दिया जाता है और न ही इनकी पूजा की जाती है, इसके बावजूद यह हमेशा की तरह एक जैसे हरे भरे रहते है।
Raas Leela Nidhivan

 

ग्रंथो में लिखा हुआ है कि निधिवन ही वह जगह है, जहाँ श्रीराधा कृष्ण मध्यरात्रि तक रास किया करते थे। शास्त्रों में कहा गया है कि निधिवन में दिन की अन्तिम आरती होने के बाद यहाँ के सभी द्वार बंद कर दिये जाते है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि श्रीकृष्ण और राधा के स्वरूप ठा. श्री बांके बिहारी दिन ढ़लने के बाद रात्रि में निधिवन आकर श्रीराधा और उनकी सखियों संग रास रचाते है।

 

यह रास प्रत्येक रात्रि से प्रारम्भ हो मध्यरात्रि तक चलता है। कहते है कि इस रास को देखने की अनुमति किसी को नहीं है, क्योंकि जिस भी व्यक्ति द्वारा यह रास देखा जायेगा। वह व्यक्ति अपना मानसिक संतुलन खो बैठेगा। ग्रंथो में वर्णित भी है कि यह रास साधारण मनुष्यों द्वारा नहीं देखा जा सकता, क्योंकि इस रास से उत्पन्न तेज इतना अधिक होता है कि इसकी रोशनी देखे नहीं बनती है। हम बात यहाँ पर रास की कर रहे हैं, तो आपको बता दें कि श्रीमद्भाग्वत में भी लिखा हुआ है कि शरद पूर्णिमा के दिन श्रीकृष्ण, श्रीराधा व गोपियों संग निधिवन में महारास रचाते है।

 

रंग महल

 

रंग महल निधिवन की वह जगह है जहाँ भगवान श्रीकृष्ण और राधा जी रात्रि में रास करने के बाद आराम करने आते है। इस जगह को निधिवन का एक और मन्दिर कहा जाता है। जिसके लिए आज भी मान्यता है कि इसे प्रथम बार श्रीराधा द्वारा श्रीकृष्ण के आराम के लिए सजाया गया था। इसलिए यह प्रथा तबसे आज तक चली आ रही है। दिन की अन्तिम आरती के बाद जब मन्दिर के पट बंद किये जाते है।
Nidhivan rang mahal

 

 तो मन्दिर में स्थित रंग महल में चन्दन की शय्या स्थापित है। जिसे प्रतिदिन मंदिर बंद होने से पहले फूलों से गोस्वामियों द्वारा सजाया जाता है और साथ में श्रीराधा जी के लिए श्रृंगार का सामान भी रखा जाता है। रंग महल को सजाते समय उसमें एक चांदी का पानी का लौटा भी रखा जाता है, ताकि जब भगवन को रास करके थक जाने पर प्यास लगे तो वह पानी ग्रहण कर सके।

 

इनके सभी चीजों के साथ साथ मन्दिर के रंग महल में पान का बीड़ा, फल, सुपाड़ी, दांतुन, गजरा आदि सभी चीजें व्यवस्थित तरीके से वहाँ पर सजा दी जाती है और मन्दिर के पट बंद कर दिये जाते है। जब भोर में मन्दिर के पुजारियों द्वारा मन्दिर के कपाट खोले जाते है, तो उन्हें रंग महल का सभी सामान अस्त व्यस्त मिलता है और सजायी गयी चन्दन शय्या पर सलवटें पड़ी मिलती है। जिससे जाहिर होता है कि रात्रि में यहाँ कोई आया फिर उसने इन सभी चीजों का प्रयोग किया और मन्दिर के कपाट खुलने से पहले वहाँ से चला गया।

 

ललिता कुंड

Lalita Kund Vrindavan

हम आपको बता दें कि जब भी आप निधिवन देखने जायेंगे, तो वहाँ पर आपको एक कुंड भी देखने को मिलेगा। इस कुंड को ‘ललिता कुंड‘ कहा जाता है। मान्यताओं के अनुसार जब श्रीराधा की प्रियतम सखी ललिता को द्वापर युग में रास करते करते प्यास लगी, तब भगवान श्रीकृष्ण ने ललिता सखी की प्यास भुजाने के लिए अपनी बांसुरी की सहायता से निधिवन में एक कुंड उत्पन्न किया। जो वर्तमान में ललिता कुंड के नाम से जाता है। ललिता सखी श्रीराधा की वह सखी हैं, जो श्रीराधा और कृष्ण को एक दूसरे से मिलने के लिए ब्रजवासियों की नजरों से बचाने में सहायता प्रदान करती थी।

 

चेतावनी

 

निधिवन की और भी अनेक कथाऐं प्रचलित है साथ ही और भी अनेक स्थान है देखने के आप जब कभी भी वृन्दावन घूमने का विचार कर रहें हो तो एक बार निधिवन जाकर देखियेगा।
bandar - nidhivan
निधिवन में आपको वहाँ के बन्दरों से सावधानी रखनी चाहिए। उन्हें उक्साना, चिड़ाना आदि न करें व अपने कीमती सामान जैसे मोबाइल, कैमरा आदि बन्दरों की पहुच से बचा कर रखे।

 

निधिवन – समय गर्मियों में

 

कपाट खुलने का समय – सुबह के 5 बजे
कपाट बंद होने का समय – रात्रि के 8 बजे

 

निधिवन – समय सर्दियों में

 

कपाट खुलने का समय – सुबह के 6 बजे
कपाट बंद होने का समय – रात्रि के 7 बजे

“निधिवन का रहस्य – श्रीकृष्ण की रास स्थली” के लिए प्रतिक्रिया 3

  1. Jain Monika S अवतार
    Jain Monika S

    Awesome article 👌👌👍👍

  2. Harsh Chavda अवतार
    Harsh Chavda

    Nice article happy to see you that some one still interested in such topics.

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