बांके बिहारी जी कैसे प्रकट हुए

स्वामी हरिदास जी का संक्षिप्त विवरण

स्वामी हरिदास जी एक श्रेष्ठकर संगीतज्ञ व संगीत सम्राट तानसेन और बैजू बावरा के गुरू थे। हरिदास जी के पिता का श्री आशुधीर देवजी और माता का नाम गंगा देेवी था। स्वामी हरिदास जी का जन्म विक्रम सम्वत् 1535 को भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन वृन्दावन के निकट राजपुर नामक गाँव में हुआ था। माना जाता है कि स्वामी हरिदास जी का जन्म राधाअष्टमी के दिन राधा रानी की सखी ललिता का अवतार माना जाता है, जो राधाअष्टमी के शुभ अवसर का देखने के उद्देश्य से हुआ था।

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हरिदास जी को स्वपन

स्वामी हरिदास जी के गृह त्याग देने के पश्चात वह निधिवन में रहने लगे। हरिदास जी निधिवन में सदैव श्रीकृष्ण की भक्ति में मग्न रहते थे। एक दिन जब स्वामी हरिदास जी रात्रि में सो रहे थे, तब स्वामी हरिदास जी को ठा. बांके बिहारी जी की मूर्ति को भूमि से बाहर निकालने का स्वपन आया। जिसमें बिहारी जी ने स्वयं हरिदास जी को आदेश दिया कि वह उनकी प्रतिमा को धरा से बाहर निकालें।

जब स्वामी हरिदास जी द्वारा ठा. बिहारी जी के प्राकट्य को बाहर निकाला गया। तब स्वामी श्री हरिदास जी ने उनके प्राकट्य को देखकर उनका नाम ठा. श्री बांके बिहारी रख दिया, तभी से बिहारी जी विश्व में ठा. बांके बिहारी के नाम से विख्यात हुये। स्वामी हरिदास जी द्वारा जिस दिन विग्रह को धरा से बाहर निकाला गया, उस दिन मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि थी। तब से बांके बिहारी मन्दिर में ठा. श्री बांके बिहारी के जन्म की तिथि को बहुत हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है।

स्वामी हरिदास जी और उनकी भक्ति

स्वामी हरिदास जी ने अपनी शादी के बाद जब अपने घर को त्यागा था, तब उन्होेंने निधिवन को अपना घर बना लिया था। वह वहीं पर रहते और श्रीकृष्ण की संगीतमय अर्थात संगीत के रूप में भक्ति करते। स्वामी हरिदास जी का संगीत पूर्णतः श्रीकृष्ण को समर्पित था। स्वामी हरिदास जी जब भी निधिवन में ध्यान मग्न होकर श्रीकृष्ण की संगीतमय भक्ति करते थे, तब तब श्रीकृष्ण और राधा रानी युगल जोड़ी के रूप् में उनकी भक्ती रस से प्रसन्न होकर उन्हें अपने दर्शन देने के लिए प्रकट हो जाया करते थे।

स्वामी हरिदास जी के भक्तों की इच्छा

ऐसे ही एक बार स्वामी हरिदास जी के शिष्य ने हरिदास जी से कहा कि स्वामी आप ही राधा जी और श्रीकृष्ण के दर्शन कर पाते है और सभी भक्त लोग भी युगल जोड़ी के दर्शन करना चाहते है। तब स्वामी हरिदास जी ने सभी भक्तो की इच्छा का ध्यान रखते हुए श्रीकृष्ण और राधा जी की संगीतमय भक्ति करनी शुरू की। जब उनकी भक्ति से प्रसन्न हो युगल जोड़ी प्रकट हुई, तब हरिदास जी ने उन्हें अपने भक्तों की बात बताई।

बांके बिहारी का प्राकट्य

जिस पर युगल जोड़ी ने कहा कि हम इसी रूप में प्रकट हो यहाँ ठहर जाते है। इस पर हरिदास जी ने कहा कि प्रभु मैं एक संत आपकी सेवा पूजा तोे कर लूँगा, लेकिन मैं श्रीराधा रानी के लिए नित्य नये वस्त्र और आभूषण कहा से ला पाऊँगा। हरिदास जी की यह बात सुन श्रीराधा कृष्ण तनिक हसे और फिर युगल जोड़ी के रूप में एकत्रित होकर एक विग्रह के रूप में निधिवन में हरिदास जी के समक्ष प्रकट हो गये। जिन्हें देख स्वामी श्री हरिदास जी ने विग्रह का नाम ठा. श्री बांके बिहारी रख दिया।

Banke bihari prakat utsav

बांके बिहारी मन्दिर इतिहास

वर्तमान समय में बांके बिहारी मन्दिर में स्थापित ठा. श्री बांके बिहारी पूर्व में छः बार अलग अलग जगहों पर विराजमान हो चुके है। आज के समय में ठा. श्री बांके बिहारी मन्दिर जहाँ पर बना हुआ है, वह 1.15 एकड़ भूमि की जगह पूर्व में वर्ष 1748 में जयपुर नरेश महाराज जयसिंह द्वितीय के पुत्र सवाई ईश्वरी सिंह द्वारा दे दी गयी थी, क्योंकि उस समय में ब्रज क्षेत्र का बहुत बड़ा हिस्सा जयपुर घराने के अधीन हुआ करता था।

बांके बिहारी विग्रह की स्थापना का इतिहास

ठा. जी की सेवा के अधिकारी इतिहासकार आचार्य प्रहलाद वल्लभ गोस्वामी द्वारा बताया गया है कि जब बिहारी जी का प्राकट्य सन् 1543 में हुआ। तब उनकी स्थापना छः अलग जगहों पर हुई है, जिसमें –

1. हरिदास जी ने सर्वप्रथम ठा. बिहारी जी को सन् 1607 तक लतामंडप रूपी मन्दिर में विराजमान रखा था।
2. गोस्वामी जगन्नाथ जी ने सन् 1608 में एक अन्य मन्दिर ‘रंगमहल‘ नाम का बनवाया, जिसमें ठा. श्री बांके बिहारी जी सन् 1719 तक अपने भक्तों को दर्शन देते रहे।
3. सन् 1719 में बिहारी जी करौली के राजा कुंवरपाल द्वितीय की रानी के स्नेह बंधन में बंधकर करौली चले गये। जहाँ पर उन्होंने 2 साल यानि सन् 1721 तक दर्शन दिये।
4. उसके बाद सन् 1721 में बिहारी जी भरतपुर चले गये। जहाँ पर उन्होंने सन् 1724 तक दर्शन दिये।
5. जिसके बाद गोस्वामी रूपानन्द महाराज जी ने ठा. श्री बांके बिहारी जी को भरतपुर से लाने में सफल रहे, लेकिन शहीद हो गये। जिसके बाद सन् 1787 तक ठाकुर जी को निधिवन में बने पाँचवे मन्दिर में स्थापित कर दिया।
6. सन् 1787 से 1864 तक बिहारी जी को समाज की अति विकट परिस्थितों के कारण पुराने वृन्दावन में बनाये गये छठे मन्दिर में छिपा कर रखा गया। इस समय बिहारी जी अपने भक्तों को छिप कर दर्शन देते रहे।
7. सन् 1864 में बिहारी जी वर्तमान में स्थित जगह पर विराजमान हुए। तब से लेकर आज तक ठा. श्री बांके बिहारी जी अपने भक्तों को वृन्दावन धाम के बिहारीपुरा क्षेत्र में रहकर सुलभ दर्शन दे रहे है।

“बांके बिहारी जी कैसे प्रकट हुए” के लिए प्रतिक्रिया 4

  1. Krishna अवतार
    Krishna

    Really nice post about bihari ji. Good & great job from the far of mathura. Bihari ji always bless you.
    Radhey Radhey

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