पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि ठा. श्री बांके बिहारी जी की मंगला आरती नहीं होती है, जबकि वैष्णव धर्म के अनुसार प्रत्येक मन्दिर में मंगला आरती करने की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है।
सब जानते है, कि बांके बिहारी मन्दिर के विग्रह का प्राकटय निधिवन में हुआ है, जिसके कारण बिहारी जी रात्रि में निधिवन चले जाते है। इसलिए पूर्व में स्वामी हरिदास जी को भजन कीर्तन करने में कोई परेशानी न हो, इसलिए बिहारी जी का अलग से मन्दिर बना कर बिहारी जी को वहाँ पर स्थापित कर दिया गया।
जिसके बाद बांके बिहारी जी पूरा दिन ठा. श्री बांके बिहारी मन्दिर में दर्शन देने के पश्चात रात्रि में बापस निधिवन चले जाते है। निधिवन में रात्रि के दौरान वहाँ के सभी पेड़ गोपियों के रूप में परिवर्तित हो जाते है। जिसके बाद बिहारी जी श्रीराधा कृष्ण के रूप में पुनः परिवर्तित हो मध्य रात्रि तक गोपियों के साथ रास रचाया करते है और मध्य रात्रि के बाद बांके बिहारी जी निधिवन में विश्राम कर सुबह के समय पुनः ठा. श्री बांके बिहारी मन्दिर में लौट आते है।
मध्य रात्रि तक रास करने के कारण बिहारी जी देर से सोते है, इसलिए उनकी नींद मंगला के समय तक पूरी नहीं हो पाती है। इसलिए मन्दिर के सेवायत गोस्वामियों ने बिहारी जी को सुबह में मंगला आरती के लिए जगाना उचित नहीं समझते। सभी गोस्वामियों द्वारा ऐसा इसलिए किया जाता है, क्योंकि स्वामी हरिदास जी ऐसा चाहते थे।
अर्थात वर्ष में एक बार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन ठा. श्री बांके बिहारी जी की मंगला आरती की जाती है।
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