महावन (रमण रेती) का इतिहास
महावन श्रीकृष्ण के पिता नंद द्वारा अर्थात यादवों द्वारा शासित क्षेत्र था। जो श्रीकृष्ण के जन्म से पहले शासित हुआ था। पूर्व कथाओं द्वारा कहा गया है कि श्रीकृष्ण ने अपना बचपन महावन क्षेत्र में बिताया था। 1017 ईस्वी में महमूद गजनवी द्वारा महावन पर आक्रमण कर उसे धवस्त कर दिया गया था। महावन के राजकुमार कुलचंद ने आक्रमण के दौरान महमूद गजनवी की कैद से बचने के लिए स्वयं व अपने परिवार को मार डाला था।
इसके पश्चात महावन पर अहमद शाह अब्दाली, इल्तुतमिश व शाहजहाॅ द्वारा आक्रमण किया गया। मुगल शासन के दौरान महावन आगरा का परगना बना रहा।
महावन को शाहजहाॅ और औरंगजेब के शासित काल में विद्रोह का केन्द्र बना दिया गया था। जिये 17 वीं शताब्दी के दौरान नौह, जलेसर, खंडोली और सादाबाद परगना के साथ साथ नंदराम तेनुआ ज्वार के विद्रोही प्रमुख द्वारा महावन पर कब्जा किया गया। उसके पश्चात महावन बाद में राजा बहादुर पुहुप सिंह के अधीन मुरसान साम्राज्य का हिस्सा बन गया।
इसके बाद 18वीं शताब्दी के दौरान महावन भरतंपुर साम्राज्य का हिस्सा बन गया। भरतपुर का हिस्सा बनने के पश्चात जब भरतपुर की दुर्गति हुई। तब हाथरस के राजा दयाराम द्वारा महावन पर कब्जा कर लिया गया। जब सन् 1818 में अंग्रेजों द्वारा महावन की घेराबंदी कर उस पर अधिपत्य हासिल कर लिया। तो अंग्रेजों द्वारा महावन को मथुरा का हिस्सा बना दिया गया।
सालो से हाथी-हथिनी करते है पूजा
मथुरा शहर के महावन क्षेत्र रमण रेती में महाराज गुरूशरणानंद जी का आश्रम है। जहाँ उनके द्वारा आज से अनेक वर्ष पूर्व में एक हाथी और हथिनी का नवजात जोड़ा लाया गया था।
सन् 2002 में गुरू शरणानंद जी महाराज द्वारा इस जोड़े को केरल राज्य से लेकर आये थे। महाराज द्वारा इस जोड़े का नाम राधा और माधव रखा गया। हाथी और हथिनी की परवरिश गुरू महाराज द्वारा रमण रेती आश्रम में ही की गयी। बड़े होने के बाद राधा और माधव द्वारा रमण रेती आश्रम में सुबह और शाम श्री रमण बिहारी जी की आरती की जाती थी।
जब राधा और माधव द्वारा श्री रमण बिहारी की आरती की जाती थी। जिसमेे रमण बिहारी के समक्ष संतो द्वारा झांझ मजीरें व ढोल बजाये जाते थे। उनके साथ में राधा घण्टी बजाया करती थी और माधव आरती लेकर श्री रमण बिहारी जी की आरती किया करता था। बहुत समय तक ऐसे ही चलता रहा और राधा माधव बिहारी जी की आरती करते रहे।
फिर एक दिन अचानक माधव के बीमार हो जाने पर गुरू महाराज द्वारा उसका उपचार कराया गया। उपचार के बाद भी माधव ठीक न हो सका और उसकी मृत्यु हो गयी। तबसे राधा ही श्री रमण बिहारी जी की आरती किया करती है।
लोगों के सुनने में आ रहा है कि आश्रम के संतों और गुरूशरणानंद जी महाराज द्वारा दौबार से एक और राधा माधव जैसे जोड़े को केरल से लाने का प्रयास किया जा रहा है। जिससे भगवान रमण बिहारी की पूर्व की तरह पुनः आरती की जा सके।
रमण रेती में पाठशाला का संचालन किया जाता है, जिसमें शास्त्रों, ग्रन्थों इत्यादि धर्म की शिक्षा दी जाती है। इस परिसर के पिछले भाग में सरोवर भी है, जिसमें भक्तों द्वारा स्नान किया जाता है। साथ ही भोजनशाला भी है। जिसमें लोगों को पेटभर खाना खिलाया जाता है।
दर्शन समय
ग्रीष्मकाल
प्रातः मन्दिर खुलने का समय – प्रातः काल 4ः00 बजे – 12ः00 बजे
संध्या मन्दिर खुलने का समय – शाम 4ः00 बजे – 9ः00 बजे
शीतकाल
प्रातः मन्दिर खुलने का समय – प्रातः काल 5ः30 बजे – 12ः00 बजे
संध्या मन्दिर खुलने का समय – शाम 4ः00 बजे – 8ः30 बजे
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